श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 71 – मनोज के दोहे – ☆
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1 रोटी
रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।
मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।
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2 गुलाब
मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।
ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।
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3 मुँडेर
कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।
खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।
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4 पाती
पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।
होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।
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5 पलाश
मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।
साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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