श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 71 – मनोज के दोहे – ☆

1 रोटी

रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।

मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।

2 गुलाब

मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।

ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।

3 मुँडेर

कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।

खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।

4 पाती

पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।

होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।

5 पलाश

मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।

साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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