डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘अब अहिल्या को राम नहीं मिलते’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 112 ☆
☆ लघुकथा – अब अहिल्या को राम नहीं मिलते ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
पुलिस की रेड पड़ी थी। इस बार वह पकड़ी गई। थाने में महिला पुलिस फटकार लगा रही थी – ‘ शर्म नहीं आती तुम्हें शरीर बेचते हुए? औरत के नाम पर कलंक हो तुम। ‘ सिर नीचा किए सब सुन रही थी वह। सुन – सुनकर पत्थर- सी हो गई है। पहली बार नहीं पड़ी थी यह लताड़, ना जाने कितनी बार लोगों ने उसे उसकी औकात बताई है। वह जानती है कि दिन में उसकी औकात बतानेवाले रात में उसके दरवाजे पर खड़े होते हैं पर —।
महिला पुलिस की बातों का उसके पास कोई जवाब नहीं था। उसे अपनी बात कहने का हक है ही कहाँ? यह अधिकार तो समाज के तथाकथित सभ्य समाज को ही है। उसे तो गालियां ही सुनने को मिलती हैं। वह एक कोने में सिर नीचे किए चुपचाप बैठी रही। बचपन में माँ गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या की कहानी सुनाती थी। एक दिन जब ऋषि कहीं बाहर गए हुए थे तब इंद्र गौतम ऋषि का रूप धरकर उनकी कुटिया में पहुँच गए। अहिल्या इंद्र को अपना पति ही समझती रही। गौतम ऋषि के वापस आने पर सच्चाई पता चली। उन्होंने गुस्से में अहिल्या को शिला हो जाने का शाप दे दिया। पर अहिल्या का क्या दोष था इसमें? वह आज फिर सोच रही थी, दंड तो इंद्र को मिलना चाहिए?
उसने जिस पति को जीवन साथी माना था, उसी ने इस दलदल में ढ़केल दिया। जितना बाहर निकलने की कोशिश करती, उतना धँसती जाती। अब जीवन भर इस शाप को ढ़ोने को मजबूर है। सुना है अहिल्या को राम के चरणों के स्पर्श से मुक्ति मिल गई थी। हमें मुक्ति क्यों नहीं मिलती? उसने सिर उठाकर चारों तरफ देखा। इंद्र तो बहुत मिल जाते हैं जीती-जागती स्त्री को बुत बनाने को, पर कहीं कोई राम क्यों नहीं मिलता?
©डॉ. ऋचा शर्मा
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