आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट “~ शारदा वंदना ~”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆
☆ ~ सॉनेट ~ शारदा वंदना ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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आँख खुली तब, चोट लगी जब
मन सितार का तार बना बज
शारद के चरणों की पा रज
करतब करते, मौन न कर तब
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ढीला बेसुर, कसा टूटता
राग-विराग रहे सम मैया!
ले लो कैंया, दो निज छैंया
बीजांकुर पा नमी फूटता
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माता! तुम ही भाग्य विधाता
नाद-ताल-ध्वनि भाषा दाता
जन्म जन्म का तुमसे नाता
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अँखियाँ छवि-दर्शन की प्यासी
झलक दिखाओ श्वास-निवासी!
अंब! आत्म हो ब्रह्म-निवासी
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१०-३-२०२३, जबलपुर
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