श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – “नटखट नंद गोपाल। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 159 ☆

☆ “नटखट नंद गोपाल…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बजी बाँसुरी प्रेम की, हर्षित है बृजधाम

नाचें बृज की गोपियाँ, बोलें जय घनश्याम

ले पिचकारी चल पड़ीं, रखकर संग अबीर

कृष्ण मिलन की लालसा, होता हृदय अधीर

होली की हुड़दंग में, हुए सभी मदहोश

रंग प्रेम का चढ़ गया, आया सब को जोश

श्याम रंग राधे रँगी, हुईं श्याम खुद आप

रंग न दूजो चढ़ सके, समझो प्रेम प्रताप

बरसाने के रास्ते, हुए बहुत ही तंग

ग्वाल,गोपियाँ चल पड़ीं, लिए हाथ में रंग

होली राधेश्याम की, हिय में भरे उमंग

दिखते राधे-कृष्ण भी, एक रूप इक रंग

बरजोरी करने लगे, श्याम राधिके संग

राधा ऊपर से कहें, करो न हमको तंग

पिचकारी ले प्रेम की, नटखट नंद गोपाल

राधा पीछे भागते, बदली उनकी चाल

फागुन प्यारा लग रहा, देख बिरज की फाग

सबके मन “संतोष” है, बढ़ा प्रेम अनुराग

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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