प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक गावव ग़ज़ल – “बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से सींचते रहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #123 ☆ गजल – “बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से सींचते रहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
अचानक राह चलते साथ जो जब छोड़ जाते हैं
वे साथी जिन्दगी भर, सच, हमेशा याद आते हैं।
बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से सींचते रहिये
कठिन मौकोें पै आखिर अपने ही तो काम आते हैं।
नहीं देखे किसी के दिन हमेशा एक से हमने
बरसते हैं जहाँ आंसू वे घर भी जगमगाते हैं।
बुरा भी हो तो भी अपना ही सबके मन को भाता है
इसी से अपनी टूटी झोपड़ी भी सब सजाते हैं।
समझना सोचना हर काम के पहले जरूरी है
किये कर्मो का फल क्योंकि हमेशा लोग पाते हैं।
जहाँ पाता जो भी कोई परिश्रम से ही पाता है
जो सपने देखते रहते कभी कुछ भी न पाते हैं।
बहुत सी बातें मन की लोग औरों से छुपाते हैं
अधर जो कह नहीं पाते नयन कह साफ जाते हैं।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈