श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी होली पर्व पर विशेष कविता “# खंडहर… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 121 ☆
☆ # खंडहर… # ☆
सूरज की किरणों से
जो धरती जाग जाती थी
जहां ठंडी ठंडी पुरवाई
नया सवेरा लाती थी
स्नान, पूजा, ध्यान, तप
जहां घुला था कण-कण में
जहां मंदिर की घंटियां और
अजान एक साथ होती थी
रणबाँकुरे अपनी आजादी के लिए
लड़ते रहे आखरी सांस तक
सिर कटा दिया अपना
पर आने नहीं दी आंच तक
अपने पौरुष के दम पर
अपना साम्राज्य फैलाया था
एक छोर से दूसरे छोर तक
अपना ध्वज लहराया था
प्रजा का कल्याण, हित
हर राजा को प्यारा था
यहां कोई नहीं पराया था
यहां दुश्मन भी जान से प्यारा था
सुख, शांति, धर्म के
सब रखवाले थे
अपनी धार्मिक आस्था पर
जान न्योछावर करने वाले थे
हिंदू राजा का सेनापति मुगलवंशी था
तो मुगल का सेनापति हिंदू था
चाहे जिस खेमें में हो पर
समर्पण सबका बिंदु था
अपने अपने कर्तव्य को
निष्ठा से निभाते थे
शहादत दे देते रण में
पर कभी पीठ नहीं दिखाते थे
रणबाँकुरे ने लड़ी लड़ाइयां
कुछ जीती, कुछ हारे
अपने सम्मान के लिए
लड़ते रहे वो सारे
वीरांगनाओं ने भी अदम्य साहस
दिखाया था
सतीत्व की रक्षा के लिए
तीन बार जौहर अपनाया था
इन योद्धाओं को, वीरांगनाओं को
शत्, शत् नमन है
जिनको जान से ज्यादा
प्यारा वतन है
यह ऊंचे ऊंचे दुर्गम किले
अपनी कहानी दोहराते हैं
हर पत्थर बोलता है
इतिहास को समझाते हैं
सबको गले लगाओ
हर शख्स को अपना बनाओ
सब मिलकर रहेंगे तो
तूफानों को सह पायेंगे
वर्ना
समय के तूफान में
इन किलों की तरह बिखरकर
एक एक पत्थर निकलकर
सिर्फ
खंडहर रह जायेंगे /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈