श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे… ☆
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1 क्षितिज
क्षितिज नापने उड़ चला, पंछी नित ही भोर।
शाम देख फिर आ गया, सुनने कलरव शोर ।।
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वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।
अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।
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2 भूषित
धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।
प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार ।।
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भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश ।
पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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