डॉ. मुक्ता
डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख विश्वास–अद्वितीय संबल। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 175 ☆
☆ विश्वास–अद्वितीय संबल ☆
‘केवल विश्वास ही एक ऐसा संबल है,जो हमें मंज़िल तक पहुंचा देता है’ स्वेट मार्टिन का यह कथन आत्मविश्वास को जीवन में लक्ष्य प्राप्ति व उन्नति करने का सर्वोत्तम साधन स्वीकारता है,जिससे ‘मन के हारे हार है,मन के जीते जीत’ भाव की पुष्टि होती है। विश्वास व शंका दो विपरीत शक्तियां हैं– एक मानव की सकारात्मक सोच को प्रकाशित करती है और दूसरी मानव हृदय में नकारात्मकता के भाव को पुष्ट करती है। प्रथम वह सीढ़ी है, जिसके सहारे दुर्बल व अपाहिज व्यक्ति अपनी मंज़िल पर पहुंच सकता है और द्वितीय को हरे-भरे उपवन को नष्ट करने में समय ही नहीं लगता। शंका-ग्रस्त व्यक्ति तिल-तिल कर जलता रहता है और अपने जीवन को नरक बना लेता है। वह केवल अपने घर-परिवार के लिए ही नहीं; समाज व देश के लिए भी घातक सिद्ध होता है। शंका जोंक की भांति जीवन के उत्साह, उमंग व तरंग को ही नष्ट नहीं करती; दीमक की भांति मानव जीवन में सेंध लगा कर उसकी जड़ों को खोखला कर देती है।
‘जब तक असफलता बिल्कुल छाती पर सवार न होकर बैठ जाए; असफलता को स्वीकार न करें’ मदनमोहन मालवीय जी का यह कथन द्रष्टव्य है,जो गहन अर्थ को परिलक्षित करता है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास है; असफलता उसके निकट दस्तक नहीं दे सकती। ‘हौसले भी किसी हक़ीम से कम नहीं होते/ हर तकलीफ़ में ताकत की दवा देते हैं।’ सो! हौसले मानव-मन को ऊर्जस्वित करते हैं और वे साहस व आत्मविश्वास के बल पर असंभव को संभव बनाने की क्षमता रखते हैं। जब तक मानव में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा व्याप्त होता है; उसे दुनिया की कोई ताकत पराजित नहीं कर सकती, क्योंकि किसी की सहायता करने के लिए तन-बल से अधिक मन की दृढ़ता की आवश्यकता होती है। महात्मा बुद्ध के शब्दों में ‘मनुष्य युद्ध में सहस्त्रों पर विजय प्राप्त कर सकता है, लेकिन जो स्वयं कर विजय प्राप्त कर लेता है; वह सबसे बड़ा विजयी है।’ फलत: जीवन के दो प्रमुख सिद्धांत होने चाहिए–आत्म-विश्वास व आत्म- नियंत्रण। मैंने बचपन से ही इन्हें धारण किया और धरोहर-सम संजोकर रखा तथा विद्यार्थियों को भी जीवन में अपनाने की सीख दी।
यदि आप में आत्मविश्वास है और आत्म-नियंत्रण का अभाव है तो आप विपरीत व विषम परिस्थितियों में अपना धैर्य खो बैठेंगे; अनायास क्रोध के शिकार हो जाएंगे तथा अपनी सुरसा की भांति बढ़ती बलवती इच्छाओं, आकांक्षाओं व लालसाओं पर अंकुश नहीं लगा पायेंगें। जब तक इंसान काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार पर विजय नहीं प्राप्त कर लेता; वह मुंह की खाता है। सो! हमें इन पांच विकारों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए और किसी विषय पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। यदि कोई कार्य हमारे मनोनुकूल नहीं होता या कोई हम पर उंगली उठाता है; अकारण दोषारोपण करता है; दूसरों के सम्मुख हमें नीचा दिखाता है; आक्षेप-आरोप लगाता है, तो भी हमें अपना आपा नहीं खोना चाहिए। उस अपरिहार्य स्थिति में यदि हम थोड़ी देर के लिए आत्म-नियंत्रण कर लेते हैं, तो हमें दूसरों के सम्मुख नीचा नहीं देखना पड़ता, क्योंकि क्रोधित व्यक्ति को दिया गया उत्तर व सुझाव अनायास आग में घी का काम करता है और तिल का ताड़ बन जाता है। इसके विपरीत यदि आप अपनी वाणी पर नियंत्रण कर थोड़ी देर के लिए मौन रह जाते हैं, समस्या का समाधान स्वत: प्राप्त हो जाता है और वह समूल नष्ट हो जाती है। यदि आत्मविश्वास व आत्म-नियंत्रण साथ मिलकर चलते हैं, तो हमें सफलता प्राप्त होती है और समस्याएं मुंह छिपाए अपना रास्ता स्वतः बदल लेती हैं।
जीवन में चुनौतियां आती हैं, परंतु मूर्ख लोग उन्हें समस्याएं समझ उनके सम्मुख आत्मसमर्पण कर देते हैं और तनाव व अवसाद का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि उस स्थिति में भय व शंका का भाव उन पर हावी हो जाता है। वास्तव में समस्या के साथ समाधान का जन्म भी उसी पल हो जाता है और उसके केवल दो विकल्प ही नहीं होते; तीसरा विकल्प भी होता है; जिस ओर हमारा ध्यान केंद्रित नहीं होता। परंतु जब मानव दृढ़तापूर्वक डटकर उनका सामना करता है; पराजित नहीं हो सकता, क्योंकि ‘गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में’ के प्रबल भाव को स्वीकार लेता है और सदैव विजयी होता है। दूसरे शब्दों में जो पहले ही पराजय स्वीकार लेता है; विजयी कैसे हो सकता है? इसलिए हमें नकारात्मक विचारों को हृदय में प्रवेश ही नहीं करने देना चाहिए।
जब मन कमज़ोर होता है, तो परिस्थितियां समस्याएं बन जाती हैं। जब मन मज़बूत होता है; वे अवसर बन जाती हैं। ‘हालात सिखाते हैं बातें सुनना/ वैसे तो हर शख़्स फ़ितरत से बादशाह होता है।’ इसलिए मानव को हर परिस्थिति में सम रहने की सीख दी जाती है। मुझे स्मरण हो रही हैं स्वरचित पंक्तियाँ– ‘दिन-रात बदलते हैं/ हालात बदलते हैं/ मौसम के साथ-साथ/ फूल और पात बदलते हैं/ यादों के महज़ दिल को/ मिलता नहीं सुक़ून/ ग़र साथ हो सुरों का/ नग़मात बदलते हैं।’ सच ही तो है ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती/ लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।’ इसी संदर्भ में सैमुअल बैकेट का कथन अत्यंत सार्थक है– ‘कोशिश करो और नाकाम हो जाओ, तो भी नाकामी से घबराओ नहीं। फिर कोशिश करो; जब तक अच्छी नाकामी आपके हिस्से में नहीं आती।’ इसलिए मानव को ‘ख़ुद से जीतने की ज़िद्द है मुझे/ ख़ुद को ही हराना है/ मैं भीड़ नहीं हूं दुनिया की/ मेरे भीतर एक ज़माना है। ‘वैसे भी ‘मानव को उम्मीद दूसरों से नहीं, ख़ुद से रखनी चाहिए। उम्मीद एक दिन टूटेगी ज़रूर और तुम उससे आहत होगे।’ यदि आपमें आत्मविश्वास होगा तो आप भीषण आपदाओं का सामना करने में सक्षम होगे। संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो सत्कर्म व शुद्ध पुरुषार्थ से प्राप्त नहीं की जा सकती।
योगवशिष्ठ की यह उक्ति अत्यंत सार्थक है, जो मानव को सत्य की राह पर चलते हुए साहसपूर्वक कार्य करने की प्रेरणा देती है।
‘सफलता का संबंध कर्म से है और सफल लोग आगे बढ़ते रहते हैं। वे ग़लतियाँ करते हैं, लेकिन लक्ष्य-प्राप्ति के प्रयास नहीं छोड़ते’–कानरॉड हिल्टन का उक्त संदेश प्रेरणास्पद है। भगवद्गीता भी निष्काम कर्म की सीख देती है। कबीरदास जी भी कर्मशीलता में विश्वास रखते हैं, क्योंकि अभ्यास करते-करते जड़मति भी विद्वान हो जाता है। महात्मा बुद्ध ने भी यह संदेश दिया है कि ‘अतीत में मत रहो। भविष्य का सपना मत देखो। वर्तमान अर्थात् क्षण पर ध्यान केंद्रित करो।’ बोस्टन के मतानुसार ‘निरंतर सफलता हमें संसार का केवल एक ही पहलू दिखाती है; विपत्ति हमें चित्र का दूसरा पहलू दिखाती है।’ इसलिए क़ामयाबी का इंतज़ार करने से बेहतर है; कोशिश की जाए। प्रतीक्षा करने से अच्छा है; समीक्षा की जाए। हमें असफलता, तनाव व अवसाद के कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिए। जब हम लोग उसकी तह तक पहुंच जाएंगे; हमें समाधान भी अवश्य प्राप्त हो जाएगा और हम आत्मविश्वास रूपी धरोहर को थामे निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते जाएंगे।
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी
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