श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆

☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ 

ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा

ये महल रहेगा ना राज़ रहेगा

जहां सज रही थी रंगीन महफ़िले

ये रंगमहल रहेगा ना साज रहेगा

कुछ पल की ये रंगीनियां हैं

नाचती तितलियों की झलकियां हैं

कुछ प्रेम कहानियां बनी थी

वो आज भी अमर कहानियां हैं

ये ऊंचे ऊंचे महल ऐश्वर्य  बताते हैं

अपने वैभव की झलक दिखाते हैं

जिन्होंने जीती है कठिन लड़ाइयां

अपने शौर्य की निशानियाँ दर्शाते हैं

कितने हुए राजे रजवाड़े

उन्हें आज कौन याद करते हैं

जिन्होंने लगा दी जान की बाजी

ऊन शूरवीरों को जांबाज कहते हैं

उनके ही लगे हैं स्टेच्यू

हर शहर, हर चौराहे पर

उनके चरण छूकर ही

आजादी का आगाज़ करते हैं

जिन्होंने गद्दारी की वे मिट गये जमाने में

जिन्होंने मक्कारी की वे तिरस्कृत हैं फसानों में

जमाना वीरों को याद रखता है

जो गीत बनकर गाए जाते हैं दीवानों में

अहंकार, घमंड विनाश की राह है

छल कपट से आक्रमण बुजदिलों की चाह है

सत्य की जगह झूठ को मानने वाले

इतिहास में कायर, डरपोक, कमजोर और तानाशाह हैं /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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