श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना “दिखती कलियुग मार…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆
दिखती कलियुग मार, जींमते दोने में।
पड़े वृद्ध माँ-बाप, तिरस्कृत कोने में।।
सपन-सुनहरे देख, खपा दी उमर सभी,
निकल न पाया सार, व्यर्थ अब रोने में।
त्रेतायुग की याद, दिलों में है बसती ,
श्रवण हुए गुमराह, लगे अब सोने में।
आँखें खोलो जगो, समय की बलिहारी,
कृपा करो भगवान, पाप को धोने में ।
संस्कृति है बदनाम, करें पुण्य-कमाई,
मत जग करो प्रलाप, स्वजन के होने में।
श्रम से होती सुखद, निरोगी मन-काया,
सुखद मिलेगी फसल, बीज के बोने में।
सेवा-मेवा-श्रेष्ठ, समझना हम सबको,
पड़ती चाबुक मार, समय को खोने में।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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