श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# डरना छोड़ो… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 124 ☆
☆ # डरना छोड़ो… # ☆
तुम सूरज की तपिश से डरकर
कब तक छुपोगे छांवों में
यह पत्थर भी तप जायेंगे
तब आग भर देंगे तुम्हारे पावों में
तुम छालों से भरे पांवों को
जब धरती पर रखने जाओगे
इन रिसते हुए घावों पर
मरहम कहां से लाओगे
यह घाव भर जाये तो भी
टीस सदा बनी रहेगी पांवों में
चाहे धूप रहे यां छांव रहे
चलते-चलते उभर आयेगी राहों में
तुम जख्म, दर्द को लक्ष्य की तरफ मोड़ो
पथरीली चट्टानों पर दम-खम से दौड़ो
फूल ही फूल होंगे तुम्हारी राहों में
यूं डर डर कर जीने की आदत छोड़ो
जो जालिमों से डर जाये
वो बुजदिल है
जो ज़ुल्म करे असहायों पर
वो संगदिल है
सबको साथ लेके चले
वो हरदिल है
जो लूटे निर्धनों को
वो तंगदिल है
डर को छोड़ो तूफानों से लड़ जाओ
हिम्मत से सैलाबों में आगे बढ़ जाओ
लहरें तुम्हे किनारे पर पहुंचा देगी
एक बार नया इतिहास
तुम मिलकर गढ़ जाओ /
© श्याम खापर्डे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈