श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें… ☆
(सजल – मात्रा – 28, सामंत – ईत, पदांत – दिखता है, मात्रा भार – 28)
मौसम में चल रहा छल कपट, न नवनीत दिखता है।
चलो अब मौन हो जायें, समय विपरीत दिखता है।।
नेह का पैमाना बदला कुछ, अब इस जमाने में,
जहाँ निज स्वार्थ की आशा, वही मनमीत दिखता है ।
सद्भावना का अंत है, तलवारें हैं खिचीं-खिचीं ,
साहसी मानव भी अब तो, कुछ भयभीत दिखता है।
दिलों की गहराईयों में,अब कौन झाँकता भला ,
बेसुरे वाद्य यंत्रों में, मधुर संगीत दिखता है ।
दिया वरदान ईश्वर ने, सभी को नेक नीयत से,
जलाओ प्रेम का दीपक, सुखद नवगीत दिखता है ।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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