डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे …”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 176 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे … ☆
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तीव्र धूप की तीव्रता, करती तीव्र प्रहार।
घायल करे शरीर को, पड़े धूप की मार।।
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प्यारे गोल कपोल है, मिला यही आकार ।
देख- देख मन झूमता, हमें हुआ है प्यार।।
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पिया गए आखेट पर, बढ़ी आज फिर पीर।
होगा घायल कौन अब, किसे लगेगा तीर।।
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करना लालच तुम नहीं, करो हमेशा दान।
तेरे अच्छे कर्म का, मिलता है प्रतिदान।।
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भाव भरे निकुंज में, प्रिये तुम्हारा वास।
पल पल ये रस घोलता, बस तेरी है आस।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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