श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “दिल में छुपा रखा दर्द …”।)
ग़ज़ल # 71 – “दिल में छुपा रखा दर्द …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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जवानी में ख़्वाहिशें हसीनों से पयाम करती हैं,
नज़रें बेसाख्ता नाज़नीनों को सलाम करती हैं।
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ऊँचे पहाड़ों से राब्ता बहुत कुछ सिखा जाता है,
मुश्किल चढ़ाई आरज़ुओं को लगाम करती हैं।
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सागर किनारे की उदास सिंदूरी शाम सुहाती है,
दिल में छुपा रखा दर्द लहरें सरेआम करती हैं।
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जातपाँत धन वैभव से पलता लोकतंत्र दिखावा है,
चुनावी प्रक्रिया को स्वेच्छाचारी निज़ाम करती हैं।
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‘आतिश’ तेरे लबों से सच बात कही नहीं जाती,
नज़रें तख़्तनशीन सूरतों का एहतराम करती हैं।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈