श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 185 ☆ अनिर्णय
एक परिचित अपना संस्मरण सुना रहे थे। चौराहे पर लाल सिग्नल होने के कारण उनकी कार रुकी हुई थी। भीख की आस में एक बच्चे ने कार के शीशे को खटखटाया। पहले उन्होंने बच्चे को निर्विकार भाव से देखा। फिर भीतर कुछ हलचल हुई। हाथ जेब में गया। दस का नोट निकाला पर दूँ या न दूँ की ऊहापोह बनी रही। बच्चा खटखटाता रहा, नोट हथेली में दबा रहा। तभी सिग्नल हरा हो गया और ऊहापोह से छुटकारा मिल गया।
इस प्रसंग में भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने को लेकर अलग-अलग मत हो सकते हैं तथापि यह हमारे विवेचन का विषय नहीं है। हमारे चिंतन के केंद्र में है अनिर्णय।
जीवन में अनेक बार मनुष्य स्पष्ट निर्णय लेने में स्वयं को असमर्थ पाता है। कुछ लोग अनिर्णय को अस्त्र की तरह उपयोग करते हैं तो कुछ लोगों के लिए अनिर्णय ही समाधान है।
सत्य तो यह है कि अनिर्णय किसी समस्या का हल नहीं अपितु स्वयं जटिल समस्या है। अनिर्णय के शिकार व्यक्ति के जीवन में सदा एक ठहराव दृष्टिगोचर होता है। अपनी लघुकथा ‘अनिर्णय’ स्मरण हो आई है।
‘…यहाँ से रास्ता दायें, बायें और सामने, तीन दिशाओं में बँटता था। राह से अनभिज्ञ दोनों पथिकों के लिए कठिन था कि कौनसी डगर चुनें। कुछ समय किंकर्तव्यविमूढ़ -से ठिठके रहे दोनों।
फिर एक मुड़ गया बायें और चल पड़ा। बहुत दूर तक चलने के बाद उसे समझ में आया कि यह भूलभुलैया है। रास्ता कहीं नहीं जाता। घूम फिरकर एक ही बिंदु पर लौट आता है। बायें आने का, गलत दिशा चुनने का दुख हुआ उसे। वह फिर चल पड़ा तिराहे की ओर, जहाँ से यात्रा आरंभ की थी।
इस बार तिराहे से उसने दाहिने हाथ जानेवाला रास्ता चुना। आगे उसका क्या हुआ, यह तो पता नहीं पर दूसरा पथिक अब तक तिराहे पर खड़ा है, वैसा ही किंकर्तव्यविमूढ़, राह कौनसी जाऊँ का संभ्रम लिए।
लेखक ने लिखा, ‘गलत निर्णय, मनुष्य की ऊर्जा और समय का बड़े पैमाने पर नाश करता है। तब भी गलत निर्णय को सुधारा जा सकता है पर अनिर्णय मनुष्य के जीवन का ही नाश कर डालता है। मन का संभ्रम, तन को जकड़ लेता है। तन-मन का साझा पक्षाघात असाध्य होता है…..।’
समस्या के असाध्य होने की जड़ में बहुधा अनिर्णय ही होता है। संत कबीर ने लिखा है,
काल करे सो आज करे, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब?
निर्णय विचारपूर्वक लें। आवश्यकता पड़ने पर निर्णय बदलें पर अनिर्णय में न रहें।.. इति।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
श्री हनुमान साधना
अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक
इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही
💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।