प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “रेल पर दो कविताएं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #128 ☆ कविता – “रेल पर दो कविताएं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
(16 अप्रेल, 1853 – यह दिवस ऐतिहासिक ,जब दौड़ी थी पटरी पर रेल पहली बार…)
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[1] रेल भारत में
परिवर्तन इस विश्व का आवश्यक व्यवहार
धीरे-धीरे सदा से बदल रहा संसार
सदी अट्ठारह तक रहा धार्मिक सोच प्रधान
पर उसके उपरांत नित सबल हुआ विज्ञान
बदली दृष्टि जरूरतें उपजे नए विचार
यूरोप से चालू हुए नए नए अविष्कार
भूमि वायु जल अग्नि नभ प्रमुख तत्व ये पांच
इनके गुण और धर्म की शुरू हुई नई जांच
इनके चिंतन परीक्षण से उपजा नव ज्ञान
प्रकृति की समझ प्रयोग ही कहलाता विज्ञान
ज्यों ज्यों इस सदवृत्ति का बढ़ता गया रुझान
जग में नित होते गए नए सुखद निर्माण
चूल्हे पै चढ़ी जल भरी गंज का ढक्कन देख
जेम्स वाट की बुद्धि में उपजा नवल विवेक
उसे उठाकर गिराकर उड़ जाती जो भाप
जल को भाप में बदल शक्ति देता ताप
इसी प्रश्न में छुपा है रेल का आविष्कार
वाष्प इंजन सृजन का यह ही मूलाधार
समय-समय होते गए क्रमशः कई सुधार
इंजन पटरी मार्ग और डिब्बे बने हजार
रेल गाड़ियां चल पड़ी बढ़ा विश्व व्यापार
लाखों लोगों को मिले इससे नए रोजगार
यात्रा माल ढुलाई से कई हुए मालामाल
और बड़े क्या सुधार हो यह है सतत सवाल
आई अट्ठारह सौ सैंतीस में भारत पहली रेल
धोने पत्थर सड़क के शुरू हुआ था खेल
शुरू हुआ मद्रास से रेलों का विस्तार
आज जो बढ़ हो गया है कि मी अड़सठ हजार
अब विद्युत से चल रही रेलवे कई हजार
कई फैक्ट्रियां बनाती पुर्जे विविध प्रकार
अब तो हर एक क्षेत्र में व्याप्त ज्ञान विज्ञान
लगता है विज्ञान ही है अब का भगवान
[2] रेल के प्रभाव
रेलगाड़ियों का हुआ ज्यों ज्यों अधिक प्रसार
सुगम हुई यात्राएं और बढा क्रमिक व्यापार
आने जाने से बढा आपस में सद्भाव
सुविधाएं बढ़ती गई घटते गए अभाव
सहज हुआ आवागमन नियम भी बने उदार
बदला हर एक देश औ बदल चला संसार
लेन-देन में वृद्धि हुई खुले नए बाजार
लाभ मिला हर व्यक्ति को बढ़े नए रोजगार
शुरु में अपने देश में कई थे रेल के गेज
इससे कुछ असुविधाएं थीं थे क्षेत्रीय विभेद
प्रमुख लाइने एक हुई बदल रहे अब गेज
एक गेज होंगे तभी प्रगति भी होगी तेज
आगे एंजिन से जुड़े डिब्बे भरे अनेक करते
करते लंबी यात्रा बनकर गाड़ी एक
दर्शक को दिखता सदा रेल क मोहक रूप
खड़ी हो या हो दौड़ती दिखती रेल अनूप
रेल दौड़ती सुनाती एक लयात्मक गीत
बच्चों को लगता मधुर वह ध्वनि मय संगीत
रेल मार्ग में जहां भी होता अधिक घुमाव
वहां निरखना रेल को रचता मनहर भाव
नयन देखते दृश्य हैं मन पाता आनन्द
सुंदर दृश्यों को सदा करते सभी पसंद
रेल ने ही विकसित किया पर्यटन उद्योग
तीर्थाटन भी बन गया एक सुखदाई योग
समय और व्यय बचाने प्रचलित कई हैं रेल
राजधानी, दुरंतो, संपर्क क्रांति या मेल
स्टेशन बनता जहाँ होता बड़ा प्रभाव
रेल आर्थिक ही नहीं लाती कई बदलाव
रेल पहुँच देती बदल सारा ही परिवेश
सामाजिक बदलाव से बनता सुंदर देश
छू जाती जिस भाग को आती जाती रेल
होने लगता प्रगति का वहीं मनोहर खेल
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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