श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय के दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य  #179 ☆

☆ तन्मय के दोहे…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कभी हँसे, रोयें कभी, जीवन हुआ कुनैन।

भागदौड़ की जिंदगी, पलभर मिले न चैन।।

भूल रहे निज बोलियाँ, भूले निज पहचान।

नव विकास की दौड़ में, भटक गया इंसान।।

नव-विकास की दौड़ में,  मची हुई है होड़।

धर्म-कर्म जो हैं नियत, सब को पीछे छोड़।।

हो जाने पर गलतियाँ, या अनुचित संवाद।

तनिक ग्लानि होती नहीं, होता नहीं विषाद।।

प्रगतिवाद के दौर  में, संस्कृति का उपहास।

निजता पर भी आँच है, भस्मासुरी विकास।।

रहा न पानी  आँख में,  हुई निर्वसन लाज।

उच्छृंखल वातावरण,  निडर विचरते बाज।।

फूलों जैसा दिल कहाँ, पैसा हुआ दिमाग।

दिल दिमाग गाने लगे, मिल दरबारी राग।।

भीतर की बेचैनियाँ, भाव-हीन संवाद।

फीकी मुस्कानें लगें, चेहरे पर बेस्वाद।।

संबंधों  के  बीच में,  मजहब की  दीवार।

देवभूमि, इस देश में, यह कैसा व्यवहार।।

निश्छल सेवाभाव से,  मिले परम् संतोष।

मिटे ताप मन के सभी, संचित सारे दोष।।

शुभ संकल्पों की सुखद, गागर भर ले मीत।

जितना बाँटें  सहज हो,  बढ़े  सभी से प्रीत।।

कर्म अशुभ करते रहे, दुआ न आये काम।

मन की निर्मलता बिना, नहीं मिलेंगे राम।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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