डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे …”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 178 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे … ☆
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आभार
नाम लिया है आपने, मान रहे आभार।
शब्द नहीं हैं कोश में, करो प्रेम स्वीकार।।
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ज्वार
ज्वार बाजरा खा रहे, है सेहत का राज।
ताकत अब बढ़ने लगी, बोझ न लगता काज।।
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पुलकन
मन पुलकित अब हो गया, आई मेरे द्वार।
पुलकन मन की जान लो, तुम ही मेरा प्यार।।
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सुकुमार
लिखा प्रकृति पर पंत ने, कवि-मन है सुकुमार।
शब्द -शब्द से झाँकता, पर्यावरण अपार।।
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चितवन
चितवन तेरी देखकर, मन है हुआ अधीर।
बढ़ी मिलन की प्यास है, होती मन में पीर।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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