श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है मज़दूर दिवस पर आधारित एक हृदयस्पर्शी लघुकथा “मजदूर दिवस”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 156 ☆
☆ लघुकथा 🚩 मजदूर दिवस 🚩☆
प्रति वर्ष की भांति आज फिर एक नेता जी के बंगले के सामने एक बहुत बड़े बैनर पोस्टर पर लिखा था आज मजदूर दिवस के उपलक्ष में कोई भी मजदूर अपना कार्ड दिखाकर पेट भर भोजन कर सकता है। पूरे आसपास चर्चा का विषय बन गया। सभी मजदूर यहां-वहां भागने लगे। एक दूसरे को बताने लगे कि आज खाना भरपेट मिलेगा। क्यों? ना ठेकेदार से आज की छुट्टी लेकर लाइन में लगकर भोजन किया जाए।
इधर उधर से सभी मजदूर वहां पहुंचने लगे। दुखिया भी अपना फावड़ा हाथ में लिए वहां पहुंच गया। दोनों हाथ पर भरे भरे छाले थे। पेट चिपका, बाल बिखरे लगातार काम और खाना नहीं मिलने की वजह से वह काफी बीमार लग रहा था।
बंगले के मालिक ने दुखिया के साथ फोटो खिंचवाई। खाना खाने के बाद दुखिया बाहर निकल रहा था। चार कदम भी नहीं चल पाया, बेहोश होकर गिर पड़ा। अफरा तफरी मच गई सभी मजदूर भागने दौड़ने लगे।
चीखने चिल्लाने लगे किसी ने कहा… जल्दी से अस्पताल ले जाओ। दुखिया को उठाकर अस्पताल ले जाया गया। हालत बिगड़ती चली गई दुखिया के साथ आए हुए कुछ उसके साथियों ने देखा पलभर में ही दुखिया दुनिया को छोड चला गया।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट आया डाक्टरों ने बताया… दुखिया कई दिनों से भूखा था, उसकी पेट की नसें सूख चुकी थी। आज उसे जब भरपूर खाना मिला। वह जरूरत से ज्यादा खा लिया। आंतों ने इसे स्वीकार नहीं किया और दुखिया खाना खाने की खुशी को सहन नहीं कर पाया। दिमागी संतुलन भी खो चुका।
बात हवा की तरह फैल गई बंगले के बाहर दुखिया के मृत शरीर को रखकर सभी मजदूर चिल्ला चिल्ला कर मजदूर दिवस जिंदाबाद मजदूर, एकता जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे।
तभी किसी मजदूर ने धीरे से कहा… एक सप्ताह पहले दुखिया इसी बंगले पर कुछ खाने को मांगने आया था। बदले में वह कुछ काम कर दूंगा ऐसा कह रहा था। परंतु नेताजी ने चौकीदार से कह कर उसे बाहर से ही भगा दिया था और आज वह खाना खाकर मर गया।
उसके इतना कहते ही उसे घसीटते हुए भीड़ में न जाने कहां ले जाया गया पता नहीं चला। पुलिस और नेताओं की भीड़ बंगले के सामने लगे पोस्टर के साथ हाथ जोड़ती नजर आ रही थी और पोस्टर के सामने खड़े होकर सभी फोटो खिंचवा रहे थे।
पोस्टर पर लिखा मजदूर दिवस उड़कर उड़कर मजदूरों की कहानी बता रहा था।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈