हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 14 – कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला है ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले
श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण रचना कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला है. अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 14 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला है ☆
बेरंग है सारे रंगों की अभिलाषा
हमनें गढ़ी सुविधा की परिभाषा
जिसनें सोखा नही हरा
हमनें कहाँ उसे हरा रंग
जिसनें जज़्ब किया नही पीला
हमनें कहाँ उसे पीला रंग
ख्वाहिशें, पर फैलाती जहाँ
उसे कहाँ आसमानी रंग
भगवा तो और भी कठिन है रंग
जो है लाल औ’ पीले के मध्य का परावर्तन
हरे, नीले, भगवे रंगों की
हमनें करी ख़ूब राजनीति
जबकि असल में नहीं है
यह उस व्यक्ति, वस्तु या धर्म का रंग
हमनें रंग दिया उसको वैसा
जो नहीं था उसका खुदका रंग
असल में होते हैं बस दो ही रंग
या तो सफ़ेद या फिर काला
दोनों में समाहित है सारे रंग
अब मत चलाना अपना कुटिल दिमाग
एक को कहना पाक, एक को नापाक
खेलना अब के ऐसी होली
रहना सफ़ेद या सोखना सब रंग
बस दिखे ना एक भी इंद्रधनुषी रंग
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र