प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित ग़ज़ल – “किसी को मधुर गीतों सी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #130 ☆ ग़ज़ल – “किसी को मधुर गीतों सी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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दुनिया में मोहब्बत भी क्या चीज निराली है।
रास आई तो अमृत है न तो विषभरी प्याली है।।
इसने यहाँ दुनियामें हर एक को लुभाया है
पर दिल है साफ जिनका उनकी ही खुशहाली है।
सच्चों ने घर बसाये, झूठों के उजाड़े हैं
नासमझों के घर रहते सुख-शांति से खाली हैं।
जिनसे न बनी वह तो उनके लिये गाली है।
जो निभ न सके संग मिल, वे जलते रहे दिल में
जिनने सही समझा है घर उनके दीवाली है।
कुछ के लिये ये मीठी मिसरी से सुहानी है
पर कुछ को कटीली ये काँटों भरी डाली है।
मन के जो भले उनको यह रात की रानी है
जो स्वार्थ पगे मन के, उनको तो दुनाली है।
जिसने इसे जो समझा उसके लिये वैसी है
किसी को मधुर गीतों सी, किसी को बुरी गाली है।
जग में ’विदग्ध’ दिखते दो रूप मोहब्बत के
कहीं चाँद सी चमकीली कहीं भौंरे से काली है।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो. 9425484452
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