श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “निष्क्रियता के बीज…”।)
☆ तन्मय साहित्य #181 ☆
☆ लघुकथा – निष्क्रियता के बीज… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
साहब कोई काम है क्या पेड़-पौधों की छँटाई, साफ-सफाई या और भी कुछ घर के काम?
कुछ वर्ष पूर्व तक बारिश के महीने-पंद्रह दिन बाद से ही हाथ में खुरपी-कटर लिए दरवाजे दरवाजे ये काम करने वाले मजदूर नजर आ जाते थे।
घर के बाहर लगे पेड़ पौधों के बीच उगी घास की सफाई के लिए पिछले कई दिनों से ऐसे काम करने वाले की बाट जोह रहा था। थक हार कर काम करने वाले किसी बंदे को खोजने के लिए बाहर निकला। पास के ही मोहल्ले में एक व्यक्ति सफाई करते दिखने पर पास जा कर पूछा मैंने,-
“मेरे यहाँ यही काम करना है, करोगे?”
सुनकर पहले तो उसके माथे पर तनाव की लकीरें उभरी, फिर कुछ सोचते हुए कहा “ठीक है साहब कर दूँगा।”
“एक डेढ़ घंटे का काम है, क्या लोगे?”
साब! “1 घंटे का काम हो या थोड़े ज्यादा का मजदूरी दिन भर की लगेगी पूरे पाँच सौ रुपये।”
“पाँच सौ रुपये! आश्चर्य से मैंने प्रश्न किया।”
“हाँ साहब, ये बाबूजी भी तो दे रहे हैं, देखो – इस इतने से काम के!”
“वैसे तो अब ये सब काम धाम करना नहीं जमता हमें, पर इनके यहाँ बहुत पहले से यह सब करता आया हूँ तो उनके बुलाने पर मजबूरी में आना ही पड़ता है।”
“काम-धाम करना नहीं जमता तो फिर तुम्हारी गृहस्थी कैसे चलती है?”
“सरकार देती है न हमें, कूपन पर एक रुपए किलो में सभी प्रकार के अनाज, घासलेट, साथ में रहने को घर, मुफ्त बिजली-पानी के संग और भी बहुत सारी सुविधाएँ। तो नकदी के लिए हम लोग राशन का कुछ हिस्सा बाहर बेच देते हैं और बाकी का घर की दाल रोटी के लिए बचा लेते हैं, इसके अलावा इधर-उधर के अन्य शौक पूरे करने के लिए घरवाली लोगों के यहाँ बर्तन व झाड़ू-पोंछा कर के कमा लाती है।”
बिना पेंशनधारी सेवानिवृत्त मैं बोझिल कदमों से घर लौटते हुए सोच रहा हूँ, –
मुफ्त की ये सरकारी सुविधाएँ गरीबों का स्तर सुधारने की है या उन्हें अकर्मण्य बनाने की!
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈