(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक कविता – व्यंग्यकार…।)
कविता – व्यंग्यकार…
परसाई का परचम थामे हुए
जोशी का प्रतिदिन संभाले हुए
स्पिन से गिल्लीयां उड़ाते हुए
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
विसंगतियो पर करते प्रहार
जनहित के, निर्भय कर्णधार
शासन समाज की गतिविधि के
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
गुदगुदाते कभी , हंसाते कभी
छेड़ते दुखती रग , रुलाते वही
आईना दिखाते,जगाते समाज
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
पिटते भी हैं, पर न छोड़े कलम
कबीरा की राहों पे बढ़ते कदम
सत्य के पक्ष में, सत्ता पर करते
कटाक्ष, विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
आइरनी , विट, ह्यूमर ,सटायर
लक्षणा,व्यंजना, पंच औजार
नित नए व्यंग्य रचते , धारदार
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
स्तंभ हैं, संपादक के पन्ने के
रखते सीमित शब्दों में विचार
करने समाज को निर्विकार
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
चुभते हैं , कांटो से उसको
जिस पर करते हैं ये प्रहार
रोके न रुके लिखते जाते
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
कविता करते, लिखते निबंध
व्यंग्य बड़े छोटे , या उपन्यास
हंसी हंसी में कह देते हैं बात बड़ी
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
चोरों की दाढ़ी का तिनका
ढूंढ निकालें ये हर मन का
दृष्टि गजब पैनी रखते हैं
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
ख्याति प्राप्त विद्वान हुए हैं
कुछ अनाम ही लिखा करे हैं
प्रस्तुत करते नये सद्विचार
विश्लेषक जागृत व्यंग्यकार
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023
मोब 7000375798
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈