डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 182 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे… ☆
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लू
लू -लपटों की आग से, बढ़े ग्रीष्म का जोर।
गरम हवाएँ चल रही, तपन बढ़ी हर ओर।।
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लपट
लपट से सब बचे रहे, साथ रखिए प्याज।
जेठ महीना तप रहा, करना है सब काज।।
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ग्रीष्म
पड़े ग्रीष्म- अवकाश जब, खूब जमेगा रंग।
तरह – तरह के खेल में, संगी साथी संग।
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प्रचंड
गर्मी पड़े प्रचंड जब , घर में रहते बंद।
पशु-पक्षी भी हो रहे, हत-आहत निस्पंद।।
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अग्नि
अग्नि विरह की जल रही, जाने कैसा रोग।
पिया मिलन के पर्व का, कब होगा संयोग।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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