श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “चलो हम पेड़ बन जाएँ…”।)
☆ तन्मय साहित्य #183 ☆
☆ चलो हम पेड़ बन जाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
किसी के काम आ जाएँ
चलो हम पेड़ बन जाएँ
हवाओं को करें निर्मल,
पथिक को छाँव मिल जाए।
हमारे फूल-फल-पत्ते
मिले बिन मूल्य ही सबको
न बंदिश है यहाँ कोई,
जिसे जो चाहिए पाएँ।
करो पहचान तो हमसे
अंग प्रत्यंग में औषध
हकीम आयुष वैद्यों में,
हमारी नित्य चर्चाएँ।
करो तुम प्यार या दुत्कार
या पत्थर हमें मारो
रखें ना भेद समता भाव से
सबको ही अपनाएँ।
मेल हर एक मौसम से
सभी से मित्रता गहरी
सहज पर्यावरण के दूत,
सम्मुख है विषमताएँ।
ये धरती जीव जल जंगल
उगी है खेत में फसलें
सुरक्षा गर हमें दोगे,
न होगी अशुभ विपदाएँ।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈