श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “जब से ताबीज़ गले में बाँधा…”।)
☆ तन्मय साहित्य #184 ☆
☆ जब से ताबीज़ गले में बाँधा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
वो बात साफ साफ कहता है
जैसे नदिया का नीर बहता है।
अड़चनें राह में आये जितनी
मुस्कुराते हुए वो सहता है।
अपने दुख दर्द यूँ सहजता से
हर किसी से नहीं वो कहता है।
हर समय सोच के समन्दर में
डूबकर खुद में मगन रहता है।
बसन्त में बसन्त सा रहता
पतझड़ों में भी सदा महका है।
इतनी गहराईयों में रहकर भी
पारदर्शी सहज सतह सा है।
शीत से काँपती हवाओं में
जेठ सा रैन-दिवस दहता है।
जब से ताबीज़ गले में बाँधा
उसी दिन से वो शख्स बहका है।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈