डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना की कुंडलियाँ…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 184 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना की कुंडलियाँ… ☆
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मन की आंखों में बसा, बस तेरा ही प्यार।
देख तुझे पढ़ने लगे, आँखों का अखबार।।
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आँखों का अखबार, पढ़ें फिर तुमको जानें।
मन ही मन में ठान, बात दिल की पहचानें।।
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कहे भावना बात, सुनी बातें सब जन की।
तुम हो मेरी जान, बात कहता हूँ मन की।।
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दिल से ही कहने लगी, धड़कन दिल का हाल।
मन बेकाबू हो रहा, मिलने को तत्काल।।
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मिलने को तत्काल, सनम तुम आओ कैसे।
लिया तुम्हें है जान, नहीं हो सपने जैसे।।
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कहे भावना बात, रोज ये दिल की तुमसे ।
मन की मन से जान, बात कहते हैं दिलसे।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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