श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ग़म तो दौलत ठहरी …”।)
ग़ज़ल # 78 – “ग़म तो दौलत ठहरी …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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जब तुम्हारा दिल गुलशन में सजा पाया,
क़सम ख़ुदा की हमने बड़ा ही मज़ा पाया।
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अस्त्र हैं इस दिलचस्प खेल के वफ़ा बेवफ़ा,
अब क्या रोना है जो उस को जफ़ा पाया।
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वस्ल ओ फ़ुरक़त की तय होती नहीं सीमा,
मुहब्बत ने भी ख़ुद को अक्सर ठगा पाया।
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ग़म तो दौलत ठहरी इस रस्मे रूहानी की,
इसका हासिल ज़िंदगी जी कर जता पाया।
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जन्नत दोज़ख़ गुज़रेगा तुमसे कुछ रुक कर,
आतिश ने इसे इम्तिहान में आज़मा पाया।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈