आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा डॉ राजकुमार तिवारी ”सुमित्र’ जी की कृति “आदमी तोता नहीं” की काव्य समीक्षा।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 140 ☆
☆ काव्य समीक्षा – आदमी तोता नहीं – डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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काव्य समीक्षा
आदमी तोता नहीं (काव्य संग्रह)
डॉ। राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
प्रथम संस्करण २०२२
पृष्ठ -७२
मूल्य १५०/-
आईएसबीएन ९७८-९३-९२८५०-१२-७
पाथेय प्रकाशन जबलपुर
☆ आदमी तोता नहीं : खोकर भी खोता नहीं – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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महाकवि नीरज कहते हैं-
‘मानव होना भाग्य है
कवि होना सौभाग्य।‘
कवि कौन?
वह जो करता है कविता।
कविता क्या है?
काव्य ‘रमणीय अर्थ प्रतिपादक’।
‘ध्वनि आत्मा’, कविता की वाहक।
‘वाक्य रसात्मक’ ही कविता है।
‘ग्राह्य कल्पना’ भी कविता है।
‘भाव प्रवाह’ काव्य अनुशीलन।
‘रस उद्रेक’ काव्य अवगाहन।
कविता है अनुभूति सत्य की ।
कविता है यथार्थ का वर्णन।
कविता है रेवा कल्याणी।
कविता है सुमित्र की वाणी।
*
कवि सुमित्र की कविता ‘लड़की’
पाए नहीं मगर खत लिखती।
कविता होती विगत ‘डोरिया’
दादा जिसे बुन करते थे,
जिस पर कवि सोता आया है
दादा जी को नमन-याद कर।
अब के बेटे-पोते वंचित
निधि से जो कल की थी संचित
कल को कैसे दे पाएँगे?
कल की कल कैसे पाएँगे?
*
कवि की भाषा नदी सरीखी
करे धवलता की पहुनाई।
‘शब्द दीप’ जाते उस तट तक
जहाँ उदासी तम सन्नाटा।
अधरांगन बुहारकर खिलता
कवि मन कमल निष्कलुष खाँटा।
‘त्याज्य न सब परंपरा’ कवि मत
व्यर्थ न कोसो, शोध सुधारो’
‘खोज’ देश की गाँधीमय जो
‘काश!’ बने ऊसर उपजाऊ।
‘रिश्ते’ रिसने लगे घाव सम
है आहत विश्वास कहो क्यों?
समझ भंगिमा पाषाणों की
बच सकता है ‘गुमा आदमी’।
है सरकार समुद जल खारा
कैसे मिटे प्यास जनगण की?
*
कवि चिंता- रो रहे, रुला क्यों?
जाति-धर्म लेबिल चस्पा कर।
कवि भावों का शब्द कोश है।
शब्द सनातन, निज न पराए।
‘संस्कार’ कवि को प्रिय बेहद
नहिं स्वच्छंद आचरण भाए।
‘कवि मंचीय श्रमिक बंधुआ जो
चाट रहे चिपचिपी चाशनी
समझौतों की स्वाभिमान तज।‘
कह सुमित्र कवि-धर्म निभाते।
कभी निराला ने नेहरू को
कवि-पाती लिखकर थी भेजी।
बहिन इंदिरा ने सुमित्र को
कवि-पाती लिख सहज सहेजी।
*
‘मनु स्मृति’ विवाद बेमानी
कहता है सुमित्र का चिंतक।
‘युद्ध’ नहीं होते दीनों-हित
हित साधें व्यापारी साधक।
रुदन न तिया निधन पर हो क्यों?
‘प्रथा’ निकष पर खरी नहीं यह।
‘हद है’ नेक न सांसद मंत्री
‘अद्वितीय वह; समझे खुद को।
मंशाराम! बताओ मंशा
क्या संपादक की थी जिसने
लिखा नहीं संपादकीय था
आपातकाल हुआ जब घोषित?
*
युगद्रष्टा होता है कवि ही
कहती हर कविता सुमित्र की।
शब्द कैमरे देख सके छवि
विषयवस्तु जो थी न चित्र की।
भूखा सोता लकड़ीवाला
ढोता बोझ बुभुक्षा का जो
भारी अधिक वही लकड़ी से‘
सार कहे कविता सुमित्र की।
तोड़ रहा जंजीर शब्द हर
गोड़ जमीन कड़ी सत्यों की
कोई न जाने कितना लावा
है सुमित्र के अंतर्मन में?
चलें कुल्हाड़ी, गिरें डालियाँ
‘क्या बदला है?’ समय बताए।
पेड़ न तोता अंतरिक्ष में
ध्वनि न रंग न रस तरंग ही।
*
ये कविताएँ शब्द दूत हैं ।
भाषा सरल, सटीक शब्द हैं।
सिंधु बिन्दु में सहज न भरना
किन्तु सहज है यह सुमित्र को।
बिम्ब प्रतीक अर्थगर्भित हैं।
नवचिंतन मन को झकझोरे।
पाठक मनन करे तो पाता
समय साक्षी है सुमित्र कवि।
बात बेहिचक कहता निर्भय
रूठे कौन?, प्रसन्न कौन हो?
कब चिंता करते हैं चिंतक?
पत्रकार हँस आँख मिलाते।
शब्द-शब्द में जिजीविषा है,
परिवर्तन हित आकुलता है।
सार्थक काव्य संकलन पढ़ना
युग-सच पाठक पा सकता है।
तब तक तोता नहीं आदमी
जब तक खोता नहीं आदमी।
सपने बोता रहे आदमी
कविता कहता रहे आदमी।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२९-५-२०२३, जबलपुर
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