श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 38 ☆ देश-परदेश – बिल्ली मौसी ☆ श्री राकेश कुमार ☆
आज प्रातः भ्रमण के समय घरों और सड़कों पर अनेक स्थानों पर बिल्लियों की चहल कदमी देख कर आश्चर्य हुआ। सामान्यतः श्वान सड़कों में विचरण करते हुए ही बहुतायत में पाए जाते हैं। प्रथम मन में विचार आया की सुबह बिल्ली का रास्ता काटना शुभ नहीं माना जाता है, तभी ऊपर लगे बैनर पर दृष्टि पड़ी, तो लगा इस घर में रहने वाले तो हर समय ही बिल्लियों के बीच में रहकर भी रईस प्रतीत हो रहे हैं। शायद ये मान्यताएं अब बदल गई हैं। घर वापसी के समय जब दूध का पैकेट लिया तो विक्रेता ने कहा आज तो “शरत पूर्णिमा” है, अतिरिक्त दूध ले जाए, खीर बनती है। तब समझ में आया बिल्लियों की चहलकदमी आने वाली रात्रि की तैयारी है, ताकि घर के बाहर रखी खीर को येन केन अपने भोजन का हिस्सा बनाया जाय। हो सकता है आने वाले कल के दिन “कबूतरों” के शिकार कम हों, क्योंकि ये बिल्लियां रात्रि भर लोगों के घर के बाहर चांदनी रात में रखी हुई खीर का शिकार जो कर चुकीं होंगी।
कंजी आंख वाले मनुष्य को “बिल्ली आंख” या बिना आवाज़ के चलने वाले को भी “बिल्ली चाल” की उपमा देना हमारे दैनिक जीवन का ही भाग है।
विदेशों के समान अब हमारे देश में भी बिल्ली पालन अब स्टेटस सिंबल हो गया है। महानगरों में बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर श्वान के साथ ही साथ बिल्लियों के पालन के लिए भी अलग से खंड (विभाग) की व्यवस्था करे हुए हैं। जेब में पैसा होना चाहिए, बस! बिल्ली प्राणी पालतू श्रेणी में आती है, चुंकि ये सिंह परिवार का सदस्य है, और मांसाहारी भी है, इसलिए कुछ परिवार इससे दूरी बनाए रखते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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