श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय पर्यावरण विषयक कविता “सशंकित नई पौध है…”।)
☆ तन्मय साहित्य #186 ☆
☆ सशंकित नई पौध है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
अब विपक्ष का काम, सिर्फ करना विरोध है
साँच-झूठ की सोच, किसी को नहीं बोध है
दिखता है सबको, विरोध में राजयोग है।
वे कहते ही रहे हमेशा
अपने मन की
इन्हें फिक्र है अपने जन-धन
और स्वजन की
सत्ता लोलुपता से
दोनों संक्रमणित हैं,
भूले हैं दुख-व्यथा
निरीह आम जन-जन की
व्याधि यह असाध्य, जिसको भी लगा रोग है
दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..
हाथों में दी रास, नियंत्रण को
इस रथ की
किंतु सारथी को ही नहीं पहचान
कंटकिय दुर्गम पथ की
वे फूले हैं, फहराने में
विजय पताका
इधर विरासत को लेकर
ये भ्रमित विगत की
जन मन है बेचैन सशंकित नई पौध है
दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..
जो कुर्सी पर बैठे हैं
दिग्विजयी बनकर
दूजे भी हारे मन मारे घूम रहे हैं
यूँ ही तन कर
एक पूर्व इक वर्तमान
दोनों, कुर्सी के इच्छाधारी
आँखें बंद दिखे नहीं इनको
बेबस जनता की लाचारी
चले सियासत के हथकंडे, नए शोध हैं
दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈