श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 172 ☆

 ☆ “संतोष के दोहे…☆ श्री संतोष नेमा ☆

दिन-रात मेहनत करे, श्रम का लेता दाम

खून-पसीना बहाकर, करता अपने काम

जब तक देता साथ तन, परिश्रम करता रोज

इक दिन यदि आया नहीं, करे न कोई खोज

उसकी चाहत बस यही, भरे पेट दो जून

कभी -कभी तो खा रहा, साथ प्याज़ औ नून

जीवन में बस एक ही, उदर भरण का लक्ष्य

जिसकी खातिर रात-दिन, करता मुश्किल कृत्य

सुनता कौन गरीब की, करते सब उपयोग

नेता माँगे वोट बस, यहाँ मतलबी लोग

मजदूरों के नाम पर, बनीं योजना खूब

राहत पर मिलती नहीं, सुन सुन जाते ऊब

महल-अटारी बना कर, स्वयं खोजते छाँव

उनकी खातिर एक बस, वही पुराने गाँव

उनके दम से हो रहा, अब चहुँ ओर विकास

क्या मजदूरों की कभी, पूरन होगी आस

मजदूरों को हक़ मिले, चाहे यह संतोष

खुशियाँ उनके घर रहें, हो सब वांछित कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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