श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “माँ…”)

? ग़ज़ल # 80 – “माँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

चूल्हे  की सौंधी  रोटी पर है  चटनी जैसी माँ,

याद बहुत आती चौका बासन चिमटा जैसी माँ।

खटिया पर चिंता में बैठी आहट पर कान धरे,

आधी जागी आधी सोई सी  सोयी कैसी माँ।

चिड़ियों को दाना पानी देते बोले जय श्री कृष्ण,

रोज़ सुबह गैयन को चारा पानी देती ऐसी माँ।

बीवी  बेटी बहन  पड़ोसन थोड़ी  थोड़ी सब में,

पूरे दिन पतली डोर पर सँभलती नट जैसी माँ।

बाँटा सबका सुख दुख आँखें धँस गईं पूरी आतिश,

धुँधली सी फोटो में खिली चंचल बाला जैसी माँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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