डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कुछ का कुछ कर गई चाँदनी…।)
- साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 144 – कुछ का कुछ कर गई चाँदनी…
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ये आई, वो गई चाँदनी
कुछ का कुछ कर गई चाँदनी।
रात रोज आती है लेकिन
क्या थी कल की रात
खुली आँख से देख रहा था
सपनों की बारात
दुल्हिन जैसी लगी चाँदनी, वधूवेश में लगी मानिनी।
ये आई वो गई चाँदनी।
मेरे मन में भरी चाँदनी
फैला रही उजास
अब तो लगता आ जायेगा
मुट्ठी में आकाश।
जाने क्या कर गई चाँदनी, अमृत सा घर गई चाँदनी।
ये आई वो गई चाँदनी।
सबकी अपनी अलग चाँदनी
मेरी मेरे पास
प्राण हृदय नयनों में मेरे
है उसका अधिवास।
भक्ति मुक्ति दे गई चाँदनी, है मेरी आसक्ति चाँदनी।
ये आई वो गई चाँदनी।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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