श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #3 ☆
☆ कविता ☆ “कायनात…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
ये ज़ुल्फें ये बेलें
ये पत्ते ये कलियाँ
ये फल ये कायनात
है अदा की ये खैरात
ये हंसी ये लब
ये पौधे ये पेड़
ये आंखे ये गुफ़ा
ये मिट्टी ये आसमां
है ये बस तुम्हारी कला
निरर्थक हैं ये उसके बिना
जैसे छांव है बिना मक़सद
सुलगते उस सूरज बिन
अगर वो रुक जाएं
तो क्या तुम हो
उस हवा बिन
फूलों की इक लाश हो
वो तुम्हारी जां है
तुम उसकी मौत ना बन जाओ
बजाये मल्हार वो बैराग जो गा जाये
और कहीं तुम बस मिट्टी बनके रह जाओ
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈