डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘क्लीअरेंस’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 120 ☆
☆ लघुकथा – क्लीअरेंस ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
‘सर! इस फॉर्म पर आपके साईन चाहिए। परीक्षा है, क्लीअरेंस करवाना है‘ – विभाग प्रमुख से एक छात्रा ने कहा।
‘ठीक है। आपने विभागीय ग्रंथालय की सब पुस्तकें वापस कर दीं?’
‘सर! मैंने ग्रंथालय से एक भी पुस्तक नहीं ली थी। जरूरत ही नहीं पड़ी।‘
‘अच्छा, पिछले वर्ष पुस्तकें ली थीं आपने?‘
‘नहीं सर, कोविड था ना! ऑनलाईन परीक्षा हुई थी, तो गूगल से ही काम चल गया। सर! पाठ्यपुस्तकें भी नहीं खरीदनी पड़ीं। बी.ए. के तीन साल ऐसे ही निकल गए’ – छात्रा बड़े उत्साह से बोल रही थी।
‘सर! जल्दी साईन कर दीजिए प्लीज, ऑफिस बंद हो जाएगा।‘
हूँ —–
पास बैठे एक शिक्षक महोदय बोले – ‘सर! मैं तो कब से कह रहा हूँ, किताबें कॉलेज के ग्रंथालय को वापस कर देते हैं। विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकें तो पढ़ते नहीं हैं, ग्रंथालय से पुस्तकें लेकर क्या पढ़ेंगे?‘
‘ठीक कह रहे हैं सर आप, गूगल से ही पढ़ाई हो जाती है अब तो ‘– छात्रा यह कहती हुई क्लीअरेंस फॉर्म पर साईन लेकर तेजी से बाहर निकल गई।
©डॉ. ऋचा शर्मा
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