श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे…”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 173 ☆
☆ “संतोष के दोहे…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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संकट में जिसने दिया, सदा हमारा साथ
करें प्रकट आभार हम, जिनका सिर पर हाथ
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रहा निर्धनों का कभी, अन्न बाजरा ज्वार
किन्तु आज उनमे दिखें, न्यूट्रीशन- भरमार
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बचपन से ही बन गये, बच्चे जब सुकुमार
संघर्षों से डरें तभी, हो जाते लाचार
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दिल की पुलकन तब बढ़े, जब हो खुशी अपार
सुखद लगे आबोहवा, सुरभित चले बयार
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चितवन मेरे श्याम की, मन हर लेती रोज
कहतीं राधा प्रेम से, आज करें हम खोज
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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