प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित 24 जून बलिदान दिवस पर विशेष रचना – “रानी दुर्गावती…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ 24 जून बलिदान दिवस विशेष – “रानी दुर्गावती…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का
दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।
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उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने
दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने
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उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी
गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी
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युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी
प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी
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दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था
हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था
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साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था
बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था
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एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया
राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया
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बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया
और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया
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दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा
बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा
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एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान
और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान
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घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा
लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा
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आती हैें जीवन मेे विपदायें प्रायः बिना कहे
राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे
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पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ
विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ
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रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के
अकबर ने आसफ खाॅ को तब सेना दे भेजा लडने
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बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा
आसफ खाॅ सा सेनानी भी तीन बार उससे हारा
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तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला
नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका
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तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार
युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार
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युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार
लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार
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तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ
काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात
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भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ
बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ
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छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार
तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार
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तभी फंसी रानी को आकर लगा आॅख मे तीखा बाण
सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान
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सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ
ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विष्वाश
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फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस
बाण निकाला स्वतः हाथ से यद्यपि हार का था आभास
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क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढें जोश और हाहाकार
दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार
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घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार
तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार
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स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है माॅ रेवा के पानी मे
जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में
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महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी
सारे गोैडवाने मे जन जन से जो गई सराही थी
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असमय विधवा हुई थी रानी माॅ बन भरी जवानी में
दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में
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जीकर दुख मे अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान
24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण
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है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार
गौर नदी के पार जहाॅ हुई गौडो की मुगलों से हार
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कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार
बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार
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कभी दगा देती यह दुनियाॅ कभी दगा देता आकाश
अगर न बरसा होता पानी तो कुछ और हुआ होता इतिहास
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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