डॉ. सलमा जमाल
(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।
आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।
आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण नज़्म – “उसे भूल जा ना याद कर…”
साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 68
नज़्म – उसे भूल जा ना याद कर… डॉ. सलमा जमाल
(सन्दर्भ : कोविड)
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जो जुदा हुए वो अजीज़ थे,
तेरे अपने तेरे क़रीब थे ।
उन्हें भूल जा ना याद कर ,
जो तूने सहा ना फ़रियाद कर ।।
यह कैसी ग़म की हवा चली ,
सुनसान हो गई है गली – गली ,
सुबहा से पहले शाम ढली ,
चमन को सिर्फ़ ही ख़िज़ां मिली ,
जो गया ख़ुदा का हबीब था ,
तू फ़िर से गुलशन आबाद कर ।
जो तूने ————————- ।।
वो करोना से जुदा हुए ,
सारी उम्र तुझ पर फ़िदा हुए ,
ना वबा का कोई कुसूर था ,
ये सब इंसान का ही फ़ितूर था ,
ये क़हर हमारा नसीब था ,
बची उम्र को ना बर्बाद कर ।
जो तूने ———————— ।।
किसी के जाने से कमी नहीं ,
ये दुनियां आज तक थमीं नहीं ,
जो मिल रहा वो ग़नीमत है ,
अभी कुछ दिनों की अज़ीयत है ,
वो दीन – दुनिया का रक़ीब था ,
उसे रिश्तों से आज़ाद कर ।
जो तूने ———————— ।।
दवा अस्पताल का बहाना था ,
क़ज़ा को उन्हें ले जाना था ,
जो बचा है उसका बन रहनुमा ,
कहीं सब हो जाए ना धुंआं ,
बहारों का वो अक़ीब था ,
उसकी यादों को पुरताब कर ।
जो तूने ————————- ।।
इक बार मिलती है ज़िन्दगी ,
कर शुक्र अल्लाह की बन्दगी ,
जो बचा है उसको सहेज ले ,
तू गिले-शिकवे सारे समेट ले ,
फ़लसफ़ा ये तेरा अजीब था ,
‘ सलमा ‘ तू अपना दिल शाद कर ।
जो तूने ————————– ।।
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© डा. सलमा जमाल
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