श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “एक पूर्णिका – “कई चाहतें खड़ी हुई हैं…”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 174 ☆
☆ एक पूर्णिका – “कई चाहतें खड़ी हुई हैं…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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खींचा-तानी मची हुई हैं
आकांक्षाएँ बढ़ी हुई हैं
जिस थाली में करते भोजन
वही छेद से भरी हुई हैं
कौन किसे समझाये अब तो
समझ सभी की बढ़ी हुई हैं
उलझाते आपस में सबको
फितरत उनकी सड़ी हुई हैं
हमी रहें बस सबसे आगे
यही हसरतें पली हुई हैं
अंधे हो गये इश्क में वह तो
आँख में पट्टी चढ़ी हुई हैं
कैसे अब संतोष मिलेगा
कई चाहतें खड़ी हुई हैं
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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