डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 188 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के चित्राधारित दोहे ☆
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देख रही है वह मुझे, दरवाजे की ओट।
मंद मधुर मुस्कान है, नहीं दिख रही खोट।।
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कजरारी आँखें लिए, काले -काले बाल।
लुक छिपकर वह देखती, कुंडल झूमें गाल।।
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देख उसे मन खिंच रहा, उभरा यौवन आज।
बिंदिया मुझे बुला रही, हूँ सजनी का साज।।
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नयन अभी कुछ कह रहे, भरा हुआ है जाम।
आ जाओ अब तुम सजन, लिखा तेरा ही नाम।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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