प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत – “सदा स्वार्थ-व्यवहार…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ बाल गीतिका से – “सदा स्वार्थ-व्यवहार…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
☆
आजादी के पहले भारत में था अंग्रेजों का राज।
लूट रहे थे वे हम सबको दीन दुखी था यहाँ समाज ॥
तिलक और गाँधी ने देखे सपने, चाहा देशी राज।
कष्ट सहे, समझाया सबको, लाई चेतना और स्वराज ॥
उनके उस निस्वार्थ त्याग का सुख हम भोग रहे हैं आज ।
किन्तु खेद है उन्हें भुला कर स्वार्थमुखी हो चला समाज
सदा स्वार्थ-व्यवहार जगत् में होता है दुख का आधार ।
धन सुख का आधार नहीं है, वह तो है ममता औ’ प्यार ॥
जो चरित्र का पतन दिख रहा यह है बड़ी हमारी हार ।
बहुत जरूरी जन हित में फिर सुधरे हम सबका व्यवहार ॥
☆
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈