श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ कविता ☆ ।। सम्मान अपने कर्मों संस्कारों से कमाना पड़ता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
।।विधा।। मुक्तक।।
[1]
तू जिंदगी में शुकराने को जारी रख।
गमों में भी मुस्कराने को जारी रख।।
बहुत छोटी जिंदगी सुख दुःख से भरी।
तू मत किसी दिल दुखाने को जारी रख।।
[2]
सुन लो तो सुलझ जातें हैं यह रिश्ते।
सुना लो तो उलझ जातें हैं यह रिश्ते।।
रिश्तों में बस कोरी दुनियादारी ठीक नहीं।
कोशिश से संवर समझ जातें हैं यह रिश्ते।।
[3]
अपने परिश्रम से ही भाग्य बनाना पड़ता है।
क्रिया कलापों से जीवन उठाना पड़ता है।।
तारीफ और सम्मान मांगने से मिलते नहीं।
अपने कर्मों संस्कारों से कमाना पड़ता है।।
© एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली
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