श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ग़ाफ़िल हुआ सैर करना…”।)
ग़ज़ल # 82 – “ग़ाफ़िल हुआ सैर करना…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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कैसे कहें मुक्त यह जीवन हमारा है,
सबने बंदी जीवन यहाँ पर गुज़ारा है।
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आत्मा यहाँ बंधी इंद्रियों के मोह में,
यह देह ही तो तुम्हारी सुंदर कारा है।
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उड़ना चाहते नहीं आकाश में परिंदों सा,
हमको सोने चाँदी का पलना गवारा है।
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ग़ाफ़िल हुआ सैर करना मैंने सीखा नहीं,
घर द्वार ही तो सम्पूर्ण संसार हमारा है।
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प्यार फटकार दुलार इनकार जायज़ है,
इसके सिवा पास उसके कोई चारा है ?
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प्यास किसी की ना बुझा सकेगा सागर भी,
नदिया ही प्यासी दुनिया का एक सहारा है।
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यह मुनासिब नहीं कि तू आतिश जीतेगा ही,
जीता वह दुनिया में जीत कर भी जो हारा है।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈