श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मानसून… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 137 ☆
☆ # मानसून… # ☆
मानसून की छोटी-छोटी बूंदें
जब तन मन भिगोती है
तब गुजरे जमाने की बातें
दिल में याद आती है
बचपन में –
मानसून की पहली बारिश में
बिंदास नंगे बदन भीगना
बिजुरी की कड़क सुनकर
भय से जोर से चीखना
मस्ती में एक दूसरे पर
पानी उड़ाना
दोस्तों से लड़कर
खुद को छुड़ाना
स्कूल से घर आते वक्त
खुद भीगकर बस्ता बचाना
मां को रो रोकर भीगने के
नये नये बहाने बताना
यह शरारतें बारिश की बूंदें
साथ लाती है
तब गुजरें जमाने की बातें
दिल में याद आती है
जवानी में –
वो रिमझिम फुहारें
वो बरसता हुआ पानी
जवानी के दिनों की तो है
रंगीन कहानी
एक छाते में, भीगते हुए
दो बदन चल रहे थे
जलते हुए दावानल से
दोनों जल रहे थे
बारिश हर कदम पर
आग भड़का रही थी
दो जिस्मों को एक होने
तड़पा रही थी
हाथों में हाथ लिए
वो आगे बढ़ रहे थे
एक नयी प्रेम कहानी को
वो दोनों गढ़ रहे थे
घर आया, दोनों जुदा हो गए
एक दूसरे से अलविदा हो गए
जब फिर कोई बारिश
उनको नहीं मिलाती है
तब गुजरे जमाने की बातें
दिल में याद आती है
बुढ़ापे में –
ना वो दिन रहे, ना रातें
ना रंगीनियां रहीं
ना दिल लुभाने वाली
वो संगिनियां रही
ना वो दोस्त रहे
जो मुस्कुरा के मिलते थे
गले मिलकर सदा
फूलों की तरह खिलते थे
ना दुनिया में अब
पहले जैसे निश्वार्थ रिश्ते रहे
ना एक दूसरे पर
जान देने वाले फरिश्ते रहे
अपार्टमेंट की बालकनी में
हम पति पत्नी भीगते है
हाथों में हाथ लिए
नया रोमांस सीखते हैं
हर मानसून की बूंदें
भीगने बुलाती हैं
जीने का नया संदेश लाती है
तब गुजरे जमाने की बातें
दिल में याद आती है /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈