डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मन रहता है प्यासा।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 145 – मन रहता है प्यासा…  ✍

कितनी बात करूँ मैं तुमसे

मन रहता है प्यासा।

 

कभी कभी हो मिलना जुलना

बेमतलब की बातें

स्पर्शों को बरजा करतीं

लज्जा भरी कनातें

आँखों के रतनारे डोरे, देते रहें दिलासा।

 

अगवानी करती हैं आँखें

करते होंठ नमस्ते

मौखिक में ही वक्त बीतता

कभी न खुलते बस्ते।

होगी कभी पढ़ाई आगे, बस इतनी है आशा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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