हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 16 – लालन – पालन ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले
श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी एक मातृत्व की भावना से परिपूर्ण भावप्रवण रचना लालन – पालन . अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 16 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ लालन – पालन ☆
माँ हूँ मै तुम्हारी अपने कर्तव्य करती रहती हूँ
उपस्थित हूँ तुम्हारे, सम्मुख हूँ तुम्हारे
तो ध्येय भरती रहती हूँ ,
माँ हूँ मै तुम्हारी …….
कोख से तुम मुझसे विभक्त हुए
गर्भनाल टूटी तुम धरा पर जन्म हुए
ममत्व का तुमने मुझे भान दिया
कर्तव्यों का संग सोपान दिया
माँ हूँ मै तुम्हारी …..
तुम्हारे जन्म के संग ही मेरा पुनर्जन्म हुआ
जीवन के रंगमंच पर मातृत्व का अंक हुआ
मेरे अंक का विस्तार बढ़ता गया
तू भी तो नित नए आयाम गढ़ता गया
तुझे सफल बनाने का प्रयास करती रहती हूँ
मुख्य किरदार से अपने संवाद करती रहती हूँ
माँ हूँ मैं तुम्हारी …….
नाट्य की सफलता कथा पर निर्भर है
किरदारों की अदाकारी उनके ऊपर है
तेरा मेरा नाट्य भी सफल तभी होगा
जब दर्शक भावविभोर और तालियों का शोर होगा
तेरे सम्मुख आदर्शों का वर्णन करती रहती हूँ
माँ हूँ मैं तुम्हारी तो ध्येय भरती रहती हूँ ।
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र