श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख “पानीपत…“ श्रृंखला की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 73 – पानीपत… भाग – 3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
Nostalgia का हिंदी में अर्थ है अतीत की सुनहरी यादों में खोना और वर्तमान की उपेक्षा कर उदासीनता में डूब जाना. पर अभी तो बात उस दौर की है जब मुख्य प्रबंधक अपनी पुरानी शाखा से रिलीव नहीं हुये थे.
पदोन्नति आत्मविश्वास देती है और अगर पहले से हो तो उसमें वृद्घि करती है. ये समय होता है अपेक्षाओं को, निंदकों को शब्दहीन उत्तर देने का. वो जो आपको हल्के में लेते रहे, मजाक उड़ाते रहे उनको यह समझाने कि बंदे को “एवंई” में लेने की भूल का वो प्रायश्चित कर लें, निंदकों को यह बोलने का कि, “सॉरी” जल्दी बोल दो क्योंकि रिलीव कभी भी हो सकते हैं”. जो कट्टर निंदक होते हैं वो बैंक की प्रमोशन पॉलिसी में ही लूपहोल्स ढूंढते हैं और उनका बड़ी निर्दयता से ये मानना होता है कि “क्या जमाना आ गया है, कैसे कैसे लोग प्रमोट हो रहे हैं या “ऐसे वैसे, कैसे भी”लोग प्रमोट हो रहे हैं. तो ऐसे लोग तो न तो सॉरी बोलते हैं न ही नज़रें चुराते हैं. उनकी उद्दंडता और धृष्टता जारी रहती है, कई तो “तुसी वडे मजाकिया हो”वाले होते हैं जिनके कमेंट्स के एक दो नमूने पेश हैं;
- कैसा लगा आपको सर!!!जब रात को सोये तो स्केल थ्री थे और सुबह नींद खुली तो स्केल फोर. क्या भाभी साहिबा ने भी कुछ फर्क महसूस किया.
- सर जी!!!आप स्केल फोर प्रमोट तो बैकडेट से हुये हैं, एरियर्स भी उसी डेट से लेंगे पर काम तो स्केल थ्री का करते रहे. तो क्या रिकवरी भी होगी. इस पर उनका सहायक निंदक कटाक्ष करता कि काम तो न पहले किया न अब करने वाले हैं.
पदोन्नत पात्र शाखास्तरीय लिहाज पालने के कारण सिर्फ मुस्कुराता है और आने वाले समय से अनजान होकर भी मन ही मन सोचता है कि अब कम से कम इन ‘धतूरों’से छुटकारा मिलेगा.
शाखा में सिर्फ निंदक ही नहीं होते बल्कि आउटडोर पार्टियों का मौका तलाशने वाले लोग भी होते हैं जो परनिंदा जैसी क्षुद्र दुर्बलता से ऊपर उठकर पदोन्नत पात्र से आउटडोर पार्टियों की खर्च के अलावा सारी व्यवस्था का उत्तरदायित्व स्वंय लेकर पार्टी सेट करने में लग जाते हैं. पार्टी का मेन्यू डिसाइड करने में यहाँ चलती तो इन्हीं लोगों की है और पदोन्नत पात्र का काम सिर्फ पेमेंट करने का होता है.
पदोन्नति का आनंद क्षणिक होता है और ये अक्सर उसी शाखा तक ही सीमित रहता है जहाँ से प्रमोशन की घोषणा प्राप्त की जाती है. क्योंकि प्रमोशन के कारण नये उत्तरदायित्व, नई ब्रांच, नये परिवेश, नये लोगों से सामना नहीं होता. वैसे शिफ्टिंग तो परिवार की भी होती है जो फिलहाल इस प्रकरण में नहीं थी वरना नई जगह नया सर्वसुविधायुक्त आवास, अच्छे स्कूलों में एडमीशन पाना, सहृदय और हेल्पिंग पड़ोसी का मिलना भी किस्मत की बात होती है.
फिलहाल हमारे नवपदोन्नत मुख्य प्रबंधक शाखा से औपचारिक फेयरवेल लेकर और कुछ स्टाफ को उनकी डिमांडेड पार्टियां देकर प्रस्थान करने की तैयारी करते हैं. औपचारिक फेयरवेल में उनकी परंपरागत प्रशंसा और उनके असीम योगदान की महत्ता प्रतिपादित की गई जिसे सुनकर उन सहित कई लोग उनकी खूबियों से पहली बार परिचित हुये. चूंकि वो साइलेंट वर्कर थे तो किसी ने यह तो नहीं कहा कि उनके जाने से शाखा में सूनापन आ जायेगा पर उनके “Obediently yours and always available on need or even without any need ” इस गुण या दोष की उनके निंदकों ने भी तहेदिल से तारीफ की.
पानीपत का युद्ध जारी रहेगा.
© अरुण श्रीवास्तव
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