श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “चौकन्ने रहो…”।)
☆ तन्मय साहित्य #189 ☆
☆ चौकन्ने रहो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
कब कहाँ किस ओर से
तुम पर करेंगे वार
चौकन्ने रहो।
है इन्हीं में से कोई
जो कर रहे हैं
आज अतिशय प्यार
चौकन्ने रहो।
है जगत का सत्य
उगते सूर्य को
सब अर्घ्य देते हैं
खड़ा वन में
जो सीधा बाँस
पहला वार सब
उस पर ही करते हैं।
झूठ का लेकर सहारा
कर रहे जो
सत्य पर तकरार, चौकन्ने रहो…
ये धवल देशी धतूरे
फूल हैं निर्गन्ध
फल इनके कँटीले
शीष पर शिव के चढ़े
मदमस्त मन में
भूल कर औकात
अपनी ये नशीले।
लक्ष्मी पूत सब आज
जन सेवक बने हैं
दो मुँही सरकार चौकन्ने रहो…
प्रिय, सदा से पुत्र रहता
हर पिता का,
वंश को
आगे बढ़ाये
डोर टूटे साँस की तब
वही प्यारा पूत
अग्नि में जलाये।
प्यार के पीछे
छिपी रहती निरन्तर
संशयी तलवार चौकन्ने रहो…
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈