श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #5 ☆
☆ कविता ☆ “उसूल…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
अगर जलना है
तो जलना ही सही
दुनिया का उसूल है
तो वह भी सही
मुरझाए हैं फिर भी
फूल तो फूल ही कहलाते हैं
टूटे हैं फिर भी
काटें तो काटें ही कहलाते हैं
कायनात के हम बाशिंदे हैं
मन से उसे निभाते हैं
गर कट भी जाएं
फ़िर भी काटें ही हैं
क्या तुम कायनात के
उसूलों पर चल रही हो
मुरझाने पर भी
क्या फूल ही रहती हो
हम गर काटें हैं
तो यूं ही कटते जाएंगे
तुम अगर खिल जाती हो
तो उसूल निभाते जाएंगे
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈